०९-०९-०९
ये है इत्तिफाक ,की
महिमा नौ की कभी गाये
गोस्वामी तुलसीदास ,
नौ का पहारा देता
केवल नौ ही है ।
और ये भी अजब है
की हम सब बने है
एक साथ इस बात के
गवाह, की हमने बिठाये हैं
तिन तिन नौ सुन्ना के साथ ।
अभी भी जोतखी है
पतरा उलटते ,
लोग - बाग अभी भी
गीता को बस गेय
हैं मानते ।
हमारा घर अभी भी
करता है इन्तजार
भादो बीत जाने का ,
जबकि मानसूनी बादल
भाग गए हैं डर के मारे ,
की कही कोई टुटा मंझा
उसकी रुईया गर्दन न रेत दे ।
पर हो ,जो भी
ऐसे इत्तिफाक आदमी को
बना देता है एक
सकारात्मक मशीन ।
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