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Showing posts from June, 2009

आचार

क्योकि नारायण ने मेरे इस कदम को अच्छा लगाया इसलिए दूसरा कदम बढ़ाने की कोशिस की । प्रेरणा किसी भी रूप में लिया जा सकता है निर्भर करता है की आपकी वृत्ति कैसी है ! सहज -स्वरुप का दर्शन मानव मन विरले ही स्वीकारता है किंतु संवेगात्मक अभिवृत्ति के लिए निरक्षर मन भी तत्पर रहता है ।