ईच्छा

चाहता हूँ तुरत बड़ा बन जाऊँ

पर ,

ड़े बडे विशाल वृक्षों पे

विस्तृत बीट

याद दिला देती है

बड़े बनने का परिणाम



-- आशाओं की अपरिमित सीमा

बस

एक छलांग दूर है

बडापा का घर --

आख़िर

याद दिला ही देता है

अपने होने का परिणाम।


हँसी आती है

देखकर ध्यानमग्न बूढे वटवृक्ष को

बना कितना सहिष्णु

लेता रहता है

निकृष्ट

पर देता है सबको

समता -छाया

और ,

खासकर

इसलिए ही

चाहता हूँ बड़ा बन जाऊँ

तुंरत


Comments

Anonymous said…
वाह! वाह!
क्या शानदार बात लिखी है! इंटरनेट की दुनिया में आपका यह कदम बहुत भाया मुझे!

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