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ईच्छा

चाहता हूँ तुरत बड़ा बन जाऊँ पर , ब ड़े बडे विशाल वृक्षों पे विस्तृत बीट याद दिला देती है बड़े बनने का परिणाम । -- आ शाओं की अपरिमित सीमा बस एक छलांग दूर है बडापा का घर -- आख़िर याद दिला ही देता है अपने होने का परिणाम। हँसी आती है देखकर ध्यानमग्न बूढे वटवृक्ष को बना कितना सहिष्णु लेता रहता है निकृष्ट पर देता है सबको समता - छाया । और , खासकर इसलिए ही चाहता हूँ बड़ा बन जाऊँ । तुंरत ।